रविवार, 3 अप्रैल 2011

मालव संवत प्रवर्तन --गुड़ी पड़वा[मालवी दिवस ]

आज से २०६८ वर्षों पूर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा[गुडी पडवा] को मालव संवत का प्रवर्तन हुआ  था. मालवा क्षेत्र से प्राप्त प्राचीन ताम्र मुद्रा [ प्रथम शताब्दी ई . पूर्व ] ,जिस पर ब्राह्मी लिपि में 'मालवानां जयः' अंकित है .मालव संवत ही बाद में  विक्रम संवत के  नाम  से प्रसिद्ध हुआ.चैत्र शुक्ल प्रतिपदा[गुडी पडवा] को इस वर्ष से मालवी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. इस अवसर पर डॉ. भगवतीलाल का एक आलेख प्रस्तुत है .

मालवी दिवस गुड़ी पड़वा
 
डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित

जूना जमाना ती ज अवन्ती ने वणी को फसारो मालव जनपद केवातो रियो। मालवा को दुनिया में नाम थो। आवन्ती नाम की पराकरत, भासा, रीत, प्रव्रति, केस, सजावट, पेनावो वगेरा की बाताँ भरत का नाट्यसास्तर के साथे ज कतरई सास्तराँ में मले हे। मालव महापुरस का लक्खण का हिसाब का चितरावण ने मूरताँ भी बनती री। मालव ने मालवी राग-रागज भी गावता रिया। मालवन माता को जूनो मंदर आलिराजपुर कने हे। मालवी लिखावट की लिपि भी थी। अबे वणी जगा देवनागरी चाले हे।
मालवी नाटक माच की जगा-जगा धूम हे। मालवी ढोल ने वणा पे आडा नाच तो गाम-गाम में देखवा में आवे। मालवी भासा के मालवा ने राजस्थान का पच्चीस जिला का दो करोड़ लोग बोले हे। मालवा का गाम ने सेर की बोली होवा से या बोली हे। पण फेर भी या अणी से भासा हे के वे नी वे हजार साल ती मालवी में रचना हुई री हे। राजा मुंज, भोज, रोड, धनपाल, सुभसील, पीपा, रूपमती, चन्द्रसखी, सुन्दर के साथे सिंगाजी अफजल जसा कतरई संत कवि रचना करता रिया । फेर पन्नालाल नायब ती आज तक की पूरी सताब्दी से नवा कतरई रचनाकार कवि ने लेखकाँ का हाथाँ से मालवी को भंडार भरतो जई रियो हे। असी मालवी का उछब को साल में कोई एक दन जरुर वेणो चइये। हिन्दी दिवस, संस्करत दिवस जेसो मालवी दिवस भी होनो चइये। जणी से वणी दन मालवी भासा, साहित्य ने संस्कृति की वडोतरी पर पूरी बात वई सके।
यो मालवी दिवस साल को कोन सो दन होनो चइये। तो जणी दन अणी मालवा को मालव संमत पेलाँ पेल चल्यो ने जगत जमारा में छई गयो, ऊ ठावो दन मालवी दन होनो चइए। तो साल को यो पेलो दन हे गुडी पड़वा। चेत सुदी एकम। चेत नोवरताँ को पेलो दन। आजकाल अणी मालव संमत को ज नाम विकरम संमत हे। अणी सम्मत के पेलाँ मालव सम्मत केता था। अणी संमत को नाम ज कृत सम्मत भी थो। यो ज संमत 461 से 936 तक मालव संवत केलातो रियो .अणी वख़त का मालवा ने बायर का शिलालेखाँ में मालव संमत केलातो रियो । 898 संमत से यो मालव संमत् विक्रमादित के विकरम संमत केलाने लग्यो। ने आज भी विकरम संमत केवाय। तो जो आज को विक्रम संवत हे वणी संमत् को ज पुरानो जामाना से मालव संमत नाम हे। तो एकज संमत-दिवस के हम मालववासी मालव दिवस ने मालवा का बड़ा वीर दानी, मानी विकरमादित राजा के भी याद करी सकाँ। मालव संमत नाम बाद का मालवी राजा रजबाड़ा में भी रियो। विकरम संमत आज भारत में तो चले ज हे। पण नेपाल को राष्ट्रीय संमत हे। ‘घर का जोगी जोगड़ा आन गाम को सिद्द‘। 
अब सवाल या उठे के अणी कृत संमत को मातलब संमत नाम क्यूँ पड्यो। सब जाणे के वीर मालवगण को राज्य थो वणा का जूना चिक्का खूब मले। वणी मालवगण की थापना को संमत हे रियो। या वात सत्रासो साल जूना सिलालेखाँ में लिखी है। वी शिलालेख मन्दसौर से मल्या हे। तो मालव गणराज की थापना को दन ज मालव ने मालवी दिवस को दन हुई सके। ने ऊ मालवी दिवस अनी गुड़ी पड़वा   [4अप्रेल] के दन आयो हे।












सोमवार, 14 मार्च 2011

मालवी को मान राखणो हे




       मध्य प्रदेश के पश्चिमी भूभाग और राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र को मालवा के नाम से जाना जाता है. इसी मालव प्रदेश की मर्म मधुर बोली मालवी लोकाभिव्यक्तियों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है. इसी क्षेत्र की महिमा को संस्कृति मनीषी डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित ने मालवी में कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है.
                  

उज्जैन स्थित विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र, विक्रम विश्वविद्यालय  में डॉ. जगदीशचंद्र शर्मा , डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित एवं विश्व हिंदी संग्रहालय के संस्थापक- समन्वयक डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 

 मालवी को मान राखणो हे

                     डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित
                            
मध्यप्रदेश का मालवा की भाषा-बोली मालवी है। माल ऊँची पठारी भूमि के केवे। मालवा का गाम में दो तरे की जमीन केवाय। अडाण ने माल। पीयत अडाण ने वना पीयत माल। तो माल वालो मालवो केवाणो। मतलब यो के याँ वना पीयत से भी फसलाँ वेती री। अणी से नद्याँ छोटी थी। तो भी बारामासी होती। अब पीयत बड़ायो तो पाणी को टोटो पड ने लग्यो।
पेलाँ महाकाल वन थोवाँज अवन्ती राज कायम हुओ। फेर ऊज थोडो आसपास फसरी के जद मालव गण को राज हुयो तो मालवो केवाणो। माकालकृष्णभगवान ने ऊँकारेश्वर  का तीरथ हे याँ। विक्रमादितभरथरीभोज जेसा गुणी राजा हुवा। सिपरानरबदाचम्बलमईबेतवा जैसी छोटी पण नामी नद्याँ हे याँ। याँ का लोगाँ का धन्धा हे करसाणी ने वेपार।
             मालव देस रहे घर जाको।
             खेती बनिज जीविका ताको॥
अणी से मालवो हमेसा फलतो फूलतो र्यो ने याँ की निपज पे सबके भरोसो र्यो। पास का मारवाड  का लोगाँ में केवात वई गी थी के -
             गांगी गोल हाले। के मोय री मारी॥
के गंगा मालवे चाले। के प्राण बचावा का मोह में जाणो ज पडेगा। मारवाडी में मालवे जाणो गोल केवाय। अणी मालवा में हमेसा सुकाल र्योकदी दुकाल न पडे। अणी से यो सोना को भंडार केवातो र्यो।
               देस मालवो कंचनखाना। 
एसा सुखी लोगाँ की भासा ने पोसाक से ज पेचान हुई जाती थी। उनकी आवन्ती भासा की बात भरत का नाट्‌यशास्त्र में भी हे। वाँ पे आवन्ती रीतिवृतिप्रवृतिकेश  पद्धति तक की बात हे। या बात कामसास्तर ने चतरभाणी में भी मले। या आवन्ती पराक्रत भासा बाद में धीरे धीरे उज्जेणी मालवी वणीगी। अणी अवन्ती का आसपास मन्दसोर तक की बोली पेलाँ जो पेसाची थीवा ज अबे उजेन का बाहर मालवा की बोली हे। वणी पेसाची मालवी पे आस पडोस की मारवाडी, गुजरातीमराठीबुन्देली को असर हो तो र्यो। पण उजेणी नकेवरी वणी री। पण वणी पे बी वगत वगत का  राजा की सकीहूणीतुरकीमराठीराजस्थानीअंग्रेजी वगेरा को असर तो पड तो ज र्यो। सब मिली ने आज की मालवी हे। अणी मालवी की सेली के रीत भी सबके एसी मनभाई के उनकी रीत सास्तराँ में बेठी के हजाराँ सालाँ से गुणी लोगाँ को ध्यान खेंची री। 
मालव गण का सिक्का चाल्या। मालव संमत्‌ चाल्यो जो आज विकरम संवत्‌ केवाय। पाँच महापुरसाँ में मालव पुरस का लक्खण खास हे। जणा हिसाब से लोगाँ कीमूरताँ की ने चितरावण की पेचाण वेती थी।  वरामिहरभोजपुराण वगेरा ने ई सब बाताँ लिखी हे। संगीत में मालव राग- रागण भी खास हे। गीत- गोविन्द का वी राग आज तक सुणवा में आवे। मालवी भासा की मालवी लिपि भी थी। वणी लिपि की जगा अबे नागरी लिपि ज काम में आवे। अणी मालवा की देवी मालवन माता को पुरानो मंदर आलीराजपुर का पास में हे। अणी से या बात साफ वे के वाँ तक मालवा की हीम हे।
अवन्ती की पेचान हजारों बरसाँ से हे। मालवा नाम से वणी की पेचान भी कम से कम ढाई हजार बरसाँ से हे। आज अणी में कमज्यादा बीस जिला ने मालवी बोलने वालाकम से कम दो करोड़ लोग हे। परंपरा से मालवा की अपणी पेचान हे ने वा पेचाण कायम रेणी चइये। एसा सब उपाव होता रेणा चइए। मालवा की आपणी पेचान जगत जाणे हे। वणी मालवा ने वणी को मालवी मान मालवा वाला के ज राखणो पडेगा।[संपर्क: डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित,निदेशक ,विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन]

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

भारत का दिल की बोली हे मालवी


                                                    

सु मालव देस भलो सबहीं तैं प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा

 भारत का अलग -अलग अंचल में बोली जावा वाली बोली हुन इकी ताकत हे . हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी के ई सब मिली के ताकत देवे हे . मालवी समेत सगली भाषा ने बोलीहुन इकी खोली भरे हे . लोकभाषा ने संस्कृति को हम जितरो मन्थन कराँ उतराज रतन ने मोती हुन हमारे मिले हे. पन दिक्कत या हे के आधुनिकता की आंदी दौड में हम अपनी बोली -बानी , साहित्य -संस्कृति से मुंह मोड़ी रिया हाँ .  इना दन  जितरो विस्थापन लोग -बाग ने समाजहुन को हुइ रियो हे , ऊसे कम लोक  - साहित्य ने संस्कृति को नी हुइ रियो हे . हमारा घर- आँगन की बोलीहुन अपनाज घर में पराई होवा को दरद झेली री हे . मालवी ने निमाडी को भी योज दरद हे .मालवा के हम एक तरा से छोटो भारत केई सकां हाँ . ई में आखा भारत की संस्कृति ने ऊकी सुवास  गागर में सागर की तरा समई हुइ हे . मालवा की परम्परा हुन पे आखा भारत को असर हुओ हे तो याँ की संस्कृति ने बाकी भारत पे असर डाल्यो हे . भारत का पूरब -पश्चम ने उत्तर-दक्षण का जोडवा वाला रस्ता हुन मालवा या अवन्ती क्षेत्र से हुइ के जाता था.  इको प्रतीक धन जेसो चिन्ह दुनिया भर में जान्यो जाए हे. याँ  की मालवी तो  भारत का दिल की बोली हे . 
मालवी का साथे याँ का आसपास की बोलीहुन ने संस्कृति हुन  भी एक -दूसरा का हात में हात डाली ने  इस तरा खडी हे के ऊना के हम अलग नी करी सकां हाँ . हम याँ सोचा  के दूसरा लोगाँ की  बोली ने संस्कृति हुन मिटी जाए ने हमारी बची जाए , तो यो कदी नी हुइ  सकेगा . कोइ  भी एक बोली  या संस्कृति जद मिटे हे तो तो ऊको नुक्सान दूसरा के भी भोगनो पडेगा . एसा में हमारी कोसिस होनी चइये के सब जगा की बोलीहुन ने संस्कृति हुन बची रे ने ऊना के ऊछेरवा का सारू सब हिली -मिली के कोसिस कराँ .पतो नी कितरी सदी हुन बीती गी, यो अपनो मालवो डग -डग रोटी ने पग- पग नीर , अपनी खास आबोहवा ने भूगोल से अलग से पेचान राखे हे. कितरा  जुग बीती ग्या ,पन यो इलाको देश-विदेश का लोगां को मन हरतो अई रियो हे . पुराना भारत में जो भी खास  विदेशी मिजवान - पावणा आया, वी मालवा में जरूर आया ने याँ का लोगाँ  ने याँ  की संस्कृति को वर्णन खूब मन लगई के कर्यो . सातवीं सदी में चीन से आयो ह्वेनसांग , ग्यारहवीं  सदी में आयो अल्बरूनी, चौदहवीं सदी में आयो इब्नबतुता ,मध्य काल में आयो पुर्तगाली फादर मान्सिरेट ,फ्रान्स को पामणा बर्नियर, तेवर्नियर ने फेर अंग्रेज हुन टोमस रो, एडवर्ड टेरी, कनिंघम ,स्लीमेन  -  ई सगला मालवा ने याँ का समाज ने संस्कृति पे रीझी ग्या था . याँ की उपज ने याँ की बनी चीजाँ, याँ को ज्ञान  देश -विदेश  में पसंद कर्यो  जातो थो . सन्त कवि सुन्दरदास ने मालवा का बारा में लिख्यो हे-
वृच्छ अनन्त सुनीर वहंत सु , सुन्दर सन्त विराजै तहीं तैं।नित्य सुकाल पडे न दुकाल , सु मालव देस भलो सबहीं तैं ।।
आज विकास का नाम पे विनाश को  नवो  जमानो  अई गयो हे , पन या बात  आज भी  मालवा पे खरी उतरी री हे. ईकी वजह हे के याँ का लोग हुन ने अपनी धरती ने ऋतु हुन से अपनो रिश्तो बनायो रख्यो हे . आज मालवी ने याँ की संस्कृति घर- आँगन से लई के चोपाल ने चोराहा तक जिंदा हे.  मालवा में रेवा वाला दो करोड से ज्यादा मनख अपना मन की वात इना का माध्यम सेज केवे ने सुने हे. आज भी केई एसा शब्द ने केवात हे जिनको कोइ विकल्प अंग्रेजी  तो दूर की बात हे ,हिन्दी में भी नी मिलेगा. मालवी का कुछ नमूना देखी लो - भड़का ,हेड़नो,नवरो, गेल्यो ,खार, जामण,एबला आदि।
आज जरुरत इनी वात की हे के मालवजन को याँ की बोली -बानी से जो रिश्तो बन्यो हुओ हे , ऊ में ओर गहराई ने मजबूती आनी चइये. बदलाव तो जिन्दगी ने प्रकृति को नेम - धरम हे, पन यो देखनो भी जरूरी हे के कहीं यो बदलाव हमारी मानवता ने केई सदियाँ में बनी - संवरी हमारी लोक- संस्कृति के नी मिटइ दे. आज हमारे मालवा की बोली, धरती ने याँ का लोगाँ का साथे याँ का  इतिहास ,पर्यावरण ,व्रत- पर्व -उच्छव ,लोक देवी - देवता, कथा -वारता, गीत -गाथा ,मेले -जत्रा ने  यूं कई सकां के सगली संस्कृति से जो रिश्तो हे , ऊके पेचानां ने ओर मजबूत कराँ . बोलान्गां ने  वापराँगा , तभी तो वन्चेगी मालवी ने याँ की संस्कृति , तभी हम जीवतां केलावांगा.
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गुरुवार, 10 मार्च 2011

महान वचनकार संत वसवेश्वर की जन्म स्थली वसवन बागेवाड़ी [कर्णाटक]

वसवन बागेवाड़ी  [कर्णाटक]   महान वचनकार  संत वसवेश्वर [ 12 वीं शताब्दी ]
 की जन्म स्थली है .बीजापुर [महाराष्ट्र ]के समीप स्थित यह कस्बा विश्व मानंवता के लिए
समर्पित एक अद्वितीय साधक और क्रांति चेता मनीषी की प्रेरणादायी
 स्मृतियों को सहेजे हुए  है. 
वसवन बागेवाड़ी  [कर्णाटक] में  महान वचनकार  संत वसवेश्वर की आराधना स्थली 
  संत वसवेश्वर 
 संत वसवेश्वर का स्मारक  
महान  वचनकार  संत वसवेश्वर स्मारक 
महान वचनकार  संत वसवेश्वर 
वसवन बागेवाड़ी  [कर्णाटक] में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी
हिंदी तथा कन्नड़ साहित्य का अनुवाद 
वसवन बागेवाड़ी  [कर्णाटक] में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 
वसवन बागेवाड़ी  [कर्णाटक] में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में
हिंदी तथा कन्नड़ साहित्य का अनुवाद पर समापन उद्बोधन 

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