शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

स्वामी विवेकानंद को सामाजिक नजरियो ने उनको संदेशो

डा. शैलेन्द्रकुमार शर्मा



   भारत की सांस्कृतिक परम्परा का अनूठा रत स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी 1863-4 जुलाई 1902)  के भारतीय पुनर्जागरण का पुरोधा के रूप में जान्यो  जाए हे , तो यह उना की तरफ से  भारत के अंदर-बाहर सब तरा से देखवा-विचारवा से ही हुई सक्यो  थो । स्वामी जी ने एक तरफ भारत की महिमा को गान कर्यो हे , वहीं उकी कमी  ने समस्याहुन  पे  जम के प्रहार भी कर्यो हे वी  भारत का  भविष्य के लई  के  चिंतित ही नी था उके  फिर से बनावा संवारवा की कोशिश भी करता रिया, महान् चिंतक ने मैदानी संत – दोई तरा से । स्वामी जी की निगा अपना  दोका  पच्छम ने पूरब के महत्व देवा वाला -  दोई तरा का  लोगाँ  पे  थी । एक पक्ष पच्छम के महत्व देवा वाला लोगाँ  को थो , जो हठ करी के केता  था के जो कई भी अच्छो हे ऊ पच्छम की दुनिया  का  पास हे । दूसरो मत पूरब के महत्व देवा वाला को थो के जो कईं  भी भारत को हे वोज महान् ने अच्छो हुई सके हे ।नी  पक्ष का मनख पच्छम से कई भी सीखवा लायक नी मानता था । स्वामी विवेकानंद को योगदान इन दोपक्षहुन की जांच - पड़ताल करी के भावी भारत का समाज का निर्माण वास्ते प्रेरणा देवा वाला सूत्रहुन  को संकेत करवा  में दिखई दे हे । हम उन पे बारीकी  से विचार करी के अपना  सपनाहुन  में सज लाँ  ने  ऊना के  साकार करवा में लगी जावाँ तो भारत के फेर सेकी गौरव से भरी जगा दिलई काँगा।
    
     ज कभी भारतीय समाज के करवट लेवा की जरूरत हुई , तब कोई- नी -कोई परिवर्तन करवा वालो महापुरुष उठ खड़ो हु। ऐसा  महापुरुषहुन की कड़ी में स्वामी विवेकानंद अपना  ढंग का  अनूठा  व्यक्ति था । उना ने सामाजिक परिवर्तन को सतही तौर पर नी  लियो थो  नी इके  इकहरो  मान्यो वी परिवर्तन के समग्रता में लेवा की वात करता था । ज उना की निगाह अपना पेलाँ या साथ का सुधारकहुन के काम पे  गईं, तब वी उन सुधाराँ के  अधूरेपन के पेचानी ग्या । उना ने अपना  ढंग से सामाजिक पुनर्रचना को  आह्वान कर्यो ने उका साकार करवा वास्ते आजीवन लगा रिया वी  इनी  बात के  भलीभाँति जानता  था के  मानवीय सभ्यता से जुड्यो कोई  भी अंग अचानक नी बने हे , का  पाछे लम्बी क्रिया रे हे । ज कदी  उके  बदलवा  की कोशिश हो भी तो पेलाँ  गहराई से विचार हो, फिर हमारी निगा मूल पर भी रेनी चईए । इनी वास्ते वी केवे  हे , ‘‘म्हूँ मनुष्य जाति से यो  मान लेवा  को  अनुरोध करू हूँ के कई बी नष्ट नी करो। विनाशक सुधारक लोग संसार को कई भी उपकार नी  करी  सके । किनी वस्तु के तोड़ के धूल में मती मिलाओ, को गठन करो। यदि हुई सके तो सहायता करो, नी तो चुपचाप हाथ उठई के  खड़ा  हुई  जाओ ने  देखो, मामला कां तक जा हे । यदि सहायता नी  करी  सको तो नाश ती करो।’’ स्पष्ट हे स्वामीजी विनाशक नी , रचनात्मक समाज सुधार का पक्ष में हे , जो उनाँ के  अपना  दोका  समाज सुधारकहुन  से अलग  बना हे
     
       स्वामी जी सुधार आंदोलनहुन को  वर्गीय चरित्र के पेचानता था । इनी वजह से सामान्य मनख को उनसे दूरी को रिश्तोन्यो रियो ने वी लोकव्यापी नी हुई क्या । वे केवे हे , ‘‘ गत सदी में सुधार वास्ते जो भी आंदोलन हु, उनमें से अधिकतर ऊपरी दिखावा सरीका था । उनाँ  में से सगला केवल प्रथम दो वर्ण  से ही जुड्या रिया , बाकी  दो से नी । विधवा-विवाह का  सवाल  से सत्तर  प्रतिशत भारतीय औरतां को  कोई रिश्तो नी हे र देखो, म्हारी बात पे ध्यान दो, नी  प्रकार का  सगला  आंदोलन को रिश्तो भारत का  केवल उच्च वर्ण से ही रियो हे । जो साधारण मनख  को  तिरस्कार करी के खुद भण्या हे ’’ जाहिर हे  स्वामी जी की दृष्टि उन सगला सुधार आंदोलन पे थी, जो बगैर लोक की ताकत जगई  के चलाया  गया ने आखर में  असफल हुई ग्या वी  समाज सुधार का लिए पेलो कर्तव्य माने हे – लोगाँ के शिक्षित करनो यो  कार्य ज तक अधूरो  हे , तब तक इंतजार  करनो  पड़ेगा स्वामी विवेकानंद का यह विचार आज भी प्रासंगिक बन्यो  हुओ  हे किनी  भी बदलाव के साकार करवा का पेलाँ वी चावे हे के देश  के संगठित करवा  को  प्रयास हो, ‘‘आग जड़ में लग ने के  फेर ऊपर उठवा  दो ने  एक आखो-पूरो  भारत के संगठित करो।’’ जाहिर हे के स्वामी जी को  यो आदर्श आज भी सामाजिक परिवर्तन की स दिशा तय करी के हे । 
       स्वामी जी मानव सभ्यता का  विकास में किनी  भी तरा की  परिवर्तन की इच्छा के जरूरी  मानता था।   वी  देखता था  के  सुधारकहुण लोगाँ के  गेरई से जाने-समझे बगैर सुधार के लिए प्रेरित  करनो  चावे  हे , तब उना के ऊ परिवर्तन अधूरोगे हे । इनी  तरा  उना केसो  सुधार भी अधूरोगे हे , जो बस  कुछ बातहुन  पे  ही टिक्यो  होवी  चाहे  हे  के  परिवर्तन आमूलचूल होए ने जड़ से हो। स्वामी विवेकानंद की इनी  पंक्तिहुन सेनाँ  को सामाजिक नजरियो ने ऊकी गहनता को दर्शन होए हे - ‘‘केई सदियां से तम नाना परकार का  सुधार, आदर्श की बाताँ  करी  रिया हो ने  ज काम करवा  को  समय आ, तब तमारो  पतो नी मिले इनी वास्तेमारा आचरण  से आखी दुनिया निराहुई री हे ने  समाज-सुधार को  नाम तक आखी दुनिया का वास्ते हँसी को कारण बनी गयो हे । इको  कारण कई हे  ? तम जानो  नी  हो ? तम अच्छी तरा जानो  हो । ज्ञान की कमी तो तम में हे नी । सब अनर्थहुन को मूल कारण योज हे के तम दुर्बल हो, भोत जादा दुर्बल हो, मारो  शरीर दुर्बल हे , मन दुर्बल हे ने  अपना  आप पे श्रद्धा भी बिल्कुल नी  हे म्हारी  इच्छा हे -तम लोगाँ  के भीतर या  श्रद्धा अइ जाए , मार में से हर आदमी खड़ो हुई के  इशारा  से संसार के हिल देने वालो प्रतिभा से भर्यो  महापुरुष हुई जाए , हर तरा  से अनंत भगवान सरको हुई जाए म्हूँ  तमारे सोज देखनो  च हूँ।’’ (विवेकानंद साहित्य, खंड 5, पृ. 138-139) स्वामी विवेकानंद इनी बात से भलीभाँति परिचित था के सामाजिक परिवर्तन बाहर से नी, अंदर से होए हे । उके लावा वास्ते समाज के बाहर से नी, अंदर से मजबूत करनो जरूरी हे

स्वामी विवेकानंद के भारत की मूल शक्ति आध्यात्मिकता पर गेरो विश्वास थो। उना की या  आध्यात्मिकता कोई संकीर्ण अर्थ वाली  आध्यात्मिकता नी  हे , बल्कि  उमें धार्मिक अंध नियमहुन से मुक्ति की इच्छा हे , संपूर्ण ने सर्वव्यापी आत्मा को बोध हे वां नानात्व में बसी  एकता को राज हे। इसी वास्तेद वी सामाजिक बदलाव को आदर्श प्रस्तुत करे हे  , तब उनकी निगा आध्यात्मिक बोध पे भी टिकी री है। वे बोले हे , ‘‘सगला स्वस्थ सामाजिक बदलाव  अपना भीतर काम करवा वाली आध्यात्मिक शक्तिहुन को व्यक्त रूप होए हे , ने यदि ये बलवान ने व्यवस्थित हो, तो समाज अपने आपकेनी  तरा ढाल ले हे ’’  उनको  समाज सुधार ऊपरी नी हे , अध्यात्म की पक्की जमीन पे टिक्यो  हे ,   ‘‘तथाकथित समाज सुधार का बारा में दखल मत दिजो , क्योंकि पेलाँ आध्यात्मिक सुधार हु बिना दूसरा किनी भी तरा को सुधार नी हुईके’’ नी के वी आमूल सुधार माने हे । इना का अभाव में स्वामी जी का पेलाँ का  सुधार आंदोलन ठोस परिणाम नी  सक्या था
  
भारत का सामाजिक बदलाव में समाज सुधारकहुन की भूमिका पे विचार करता विया स्वामी विवेकानंद उनाँ से केई अपेक्षा करे हे , जिना के बगैर कोई भी परिवर्तन सफल नी हुई सके। ना की दृष्टि में एक सुधारक में गेरी सहानुभूति वेनी च, तभी वी गरीबी ने अज्ञान में डूब्या  करोड़ों नर-नारीहुन की पीड़ा का अनुभव करी सकेगा। वी सुधारकहुन  में सेवा-भावना केजरूरी माने हे स्वामी विवेकानंद भारत की सामाजिक जड़ता ने अवनति का  प्रमुख कारण का  रूप में मौलिकता के अभाव के  देखता था वी माने हे कि नवा  करवा की हमारी ताकत  नष्ट हुई  गी हे वी अपना  युग पे निगा डालता विया केवे हे , ‘‘अन्न बिना हाहाकार मची रियो हे । पर दोष किना को हे ? को  प्रतिकार करवा  की तो कई  भी कोशिश नी हुई री हे, लोगबाग बस  चिल्लाता रेवे हे । अपनी झोंपड़ी के बाहर निकलकर क्यों नी देखे के दुनिया का दूसरा लोगबाग  किनि तरा उन्नति करी रिया हे । तब हिवड़ा का ज्ञाननेत्र  खुली जाएगा ने  जरूरी कर्तव्य की तरफ ध्यान जाएगो ’’
  
       
विवेकानंद ने भारत का  नव परिवर्तन को  विराट बिंब रच्यो  हे , जो सदियां  की जड़ता के  त्यागी के ज अइ के  हे , पेलाँ वी  खुद के मिटावा  को  आह्वान इनी  अर्थ में करे हे - तम लोग शून्य में विलीन हुई  जाओ ने  फेर एक नयो  भारत निकल पड़े। निकले हल पकड़ी के , करसान की झोपड़ी भेदी के , जाली, माली सगला लोगाँ  की झोपड़ी हुन से। निकली  पड़े बनियाहुन की दुकानाँ  से, भुजवा का भाड़ का  पास से, कारखाना  से, हाट से, बाजार से। निकले झाडीहुन , जंगलाँ , पहाड़ ने  पर्वतहुन से। इन लोगाँ ने हजार साल तक चुपचाप  अत्याचार सहन कर्यों हे - उससे ली हे सहन करवा की नूठी ताकत । सनातन दुःख उठायो हे , जिससे पइ हे  अटल जीवनी शक्ति। ये लोग मुट्ठीभर सत्तू खई के  दुनिया के  उलटी  दई  सकेगा । आधी रोटी मिली गी तो तीन लोकाँ  में इतरो  तेज नी  अटी सकेगा ? रक्तबीज का  प्राणहुन  से भरया  हे ने पायो हे  सदाचार , बल जो तीनी  लोक में नी हे ’’ (खण्ड-8, पृ. 167) आज का   दौर में स्वामी विवेकानंद की या आवाज सुनी जानी चहिए, नी तो भारत की दुरावस्था को सिलसिलो खतम नी वेगा

                                          संपर्क: डा. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
                                                आचार्य एवं कुलानुशासक
                                                विक्रम विश्वविद्यालय
                                                                                                उज्जैन (म.प्र.) 456 010

विशिष्ट पोस्ट

हिंदी-भीली अध्येता कोश : निर्माण प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं समूह

Hindi - Bhili Learner's Dictionary by Prof Shailendrakumar Sharma & Group हिंदी-भीली अध्येता कोश : कोश निर्माण प्रो शैलेंद्रकुमा...

Folklore of India मालवी लोक संस्कृति की लोकप्रिय पोस्ट