मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

शनिवार, 8 सितंबर 2018

विश्व फलक पर हिंदी के नए आयाम पर राष्ट्रीय परिसंवाद और सिने गीतकार अभिलाष को विश्व हिंदी सेवा सम्मान

विश्व फलक पर हिंदी के नए आयाम पर राष्ट्रीय परिसंवाद
 सिने गीतकार अभिलाष को विश्व हिंदी सेवा सम्मान

मालवा रंगमंच समिति  द्वारा हिंदी पखवाड़े के अवसर पर 22 वें अखिल भारतीय हिंदी सेवा सम्मान एवं दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद के पहले दिन सुप्रसिद्ध सिने गीतकार अभिलाष (इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना) को विश्व हिंदी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में उनका सम्मान विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, समाजशास्त्री प्रो शैलेंद्र पाराशर, व्यंग्यकार डॉ पिलकेन्द्र अरोरा, वरिष्ठ पत्रकार श्री नरेंद्र सिंह अकेला, संस्थाध्यक्ष श्री केशव राय ने किया।


विश्व फलक पर हिंदी के नए आयाम पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद अतिथियों ने विचार व्यक्त किए। श्री अभिलाष ने सैकड़ों फिल्मों में बारह सौ से अधिक गीत रचे हैं। अंकुश, सावन को आने दो जैसी अनेक लोकप्रिय फिल्मों में समाहित उनके गीतों को देश-दुनिया में बहुत गाया-गुनगुनाया जाता है। विश्व प्रसिद्ध गीत 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' के लिए अभिलाषजी तत्कालीन  राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा नेशनल अवार्ड मिल चुका है। इस गीत को देश के सैंकड़ों विद्यालयों में प्रार्थनास्वरूप गाया जाता है। इतनी शक्ति हमें देना दाता के अलावा अभिलाषजी के लिखे साँझ भई घर आजा (लता), आज की रात न जा (लता), वो जो ख़त मुहब्बत में (उषा), तुम्हारी याद के सागर में (उषा), संसार है इक नदिया (मुकेश), तेरे बिन सूना मेरे मन का मंदिर (येसुदास) आदि सिने गीत भी लोकप्रिय हुए।  सिने गीतों पर उनसे हुई चर्चा यादगार रहेगी।
सिने जगत के मीडिया परामर्शक श्री केशव राय Keshav Rai ने यह यादगार अवसर जुटाया था। उनकी ओर से समारोह रपट -
मालवा रंगमंच समिति द्वारा  राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान 2018 और परिसंवाद आयोजित किया गया। समारोह में प्रख्यात सिने गीतकार श्री  अभिलाष को  सम्मानित  किया गया। कार्यक्रम के अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा, समाज चिन्तक प्रो शैलेन्द्र पाराशर, वरिष्ठ पत्रकार श्री नरेंद्र सिंह अकेला, व्यंग्यकार डॉ पिलकेंद्र अरोरा, मालवा रंगमंच समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री केशव राय आदि ने अभिलाष जी को सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न अर्पित कर उनका आत्मीय  सम्मान किया। सिने गीतकार अभिलाष जी ने अपने संबोधन में कहा कि हिन्दी सिनेमा के गीतों के माध्यम से उनकी पहचान दूर देशों तक पहुंची है। इतनी शक्ति हमें देना दाता गीत दुनिया की कई भाषाओं में अनूदित हुआ।

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

गीतकार अभिलाष










प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी को विश्व भाषा बनाने में सौ से अधिक देशों में बसे तीन करोड़ से ज्यादा भारतवंशियों की अहम भूमिका है। इसी तरह हिंदी फिल्मों और उनके गीतों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विदेशों में बसे भारतीयों के लिए हिन्दी महज सम्प्रेषण की भाषा नहीं, अपनी संस्कृति, अपने जीवन का पर्याय है।
प्रो शैलेंद्र पाराशर ने हिंदी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। श्री नरेंद्र सिंह अकेला, डॉ पिलकेन्द्र अरोरा आदि  ने भी विचार व्यक्त किये । 1 सितम्बर को आयोजित समारोह के प्रारम्भ में स्वागत वक्तव्य  संस्थाध्यक्ष श्री केशव राय ने दिया। सम्मान पत्र का वाचन  श्री महेश शर्मा अनुराग ने किया। अतिथि स्वागत श्री राजेश राय, श्री महेश शर्मा अनुराग, श्री प्रमोद राय,श्री ऋषि राय, श्री हर्षवर्धन लाड़, श्री  प्रकाश बांठिया  आदि ने किया। श्री अभिलाष जी  के लोकप्रिय गीत इतनी शक्ति हमें देना दाता पर आधारित कथक शैली में मनोरम नृत्य की प्रस्तुति प्रतिभा रघुवंशी के निर्देशन में नई पीढ़ी के कलाकारों ने दी। संचालन कवि श्री दिनेश दिग्गज और आभार श्री प्रकाश बांठिया ने माना ।

रविवार, 15 जुलाई 2018

लोक संस्कृति पर एकाग्र यूट्यूब चैनल Youtube Channel on Folklore

बहुरंगी भारतीय नृत्य, संगीत, नाट्य पर एकाग्र चैनल को पसन्द, शेयर और सब्सक्राइब करने के लिए लिंक पर जाएँ।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
Prof. Shailendrakumar Sharma


https://www.youtube.com/channel/UCL2L0O8RChuDNddvSAdz0fQ

Kalbelia Dance कालबेलिया नृत्य

कालबेलिया नृत्य

यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में शामिल विश्वप्रसिद्ध लोक नृत्य शैली।
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प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
Shailendrakumar Sharma

https://youtu.be/BuMzAmncdwU

रविवार, 10 जून 2018

गणगौर गीत: शुक्र को तारो रे ईश्वर ऊगी रयो


प्रसिद्ध लोक गायिका श्रीमती हेमलता उपाध्याय के स्वरों में।

https://youtu.be/oFKuw1q8qek

संजा नृत्य और गीत

संजा नृत्य और गीत


नृत्य निर्देशन: डॉ पल्लवी किशन
संगीत: पं शीतलकुमार माथुर
स्वर: उज्ज्वला दुबे और समूह।
प्रतिकल्पा की प्रभावी प्रस्तुति


https://youtu.be/m-qZcKgCWvc

प्रस्तुतकर्ता
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

रविवार, 13 मई 2018

बालकवि बैरागी: लोक की भूमि पर खड़े अनूठे कवि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दादा बैरागी! कैसे कहें अंतिम प्रणाम!!!

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

मालव सूर्य बालकवि बैरागी जी आज अस्ताचलगामी सूर्य के साथ सदा के लिए विदा कह जाएँगे, यह विश्वास नहीं होता। मालवी और हिंदी के विलक्षण कवि बैरागी जी मंचजयी कवि तो थे ही, उन्होंने लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा - तीनों में प्रतिनिधित्व करने वाले अंगुली गणनीय लोकनायकों में स्थान बनाया है।
मालवी लोक संस्कारों और लोक संगीत से अनुप्राणित कवि बालकवि बैरागी (1931- 2018 ई.) ने स्वातंत्र्योत्तर मालवी कविता को अपने शृंगार, वीर एवं करुण रसों से सराबोर गीतों के माध्यम से समृद्ध किया। वे मालव भूमि, जन और उनकी संस्कृति से गहरे सम्पृक्त रहे। उन्होंने अपनी सृजन-यात्रा की शुरूआत शृंगार एवं सौंदर्य के मर्मस्पर्शी लोक-चित्रों को लोक के ही अंदाज में प्रस्तुत करते हुए की थी। ऐसी गीतों में पनिहारी, नणदल, चटक म्हारा चम्पा, बारामासी, बादरवा अइग्या, कामणगारा की याद, बरखा आई रे आदि बहुत लोकप्रिय हुए। 

अनेक देशभक्तिपरक और ओजप्रधान गीतों के माध्यम से उन्होंने भारत माता का ऋण चुकाने का उपक्रम भी किया। ऐसे गीतों में खादी की चुनरी, हार्या ने हिम्मत, लखारा, चेत भवानी आदि खूब गाये-गुनगुनाए गए। स्वतंत्र भारत में नवनिर्माण और विकास के सपनों के साथ उन्होंने श्रम के गीत भी रचे। बीच-बीच में युद्ध के तराने भी वे गाते रहे। उनकी काव्य-यात्रा के प्रथम चरण के शृंगार-सौंदर्य एवं ओजपूर्ण गीत ‘चटक म्हारा चम्पा’ (1983) में और द्वितीय चरण के श्रम एवं ओज के गीत ‘अई जाओ मैदान में’ (1986) में संकलित हैं। मालव लोक से गहरा तादात्म्य लिए उनके भाव एवं सौंदर्य-दृष्टि का साक्ष्य देतीं कुछ पंक्तियाँ देखिए: 

 उतारूँ थारा वारणा ए म्हारा कामणगारा की याद
 नेणा की काँवड़ को नीर चढ़ाऊँ
 हिवड़ा को रातो रातो हिंगलू लगाऊँ
 रूड़ा रूड़ा रतनारा थाक्या पगाँ से
 ओठाँ ही ओठाँ ती मेंहदी रचाऊँ
 ढब थारे चन्दा को चुड़लो चिराऊँ
 नौलख तारा की बिछिया पेराऊँ
 ने उतारूँ थारा वारणा ए म्हारा मन मतवारा की याद।

 बैरागीजी लोक की भूमि पर खड़े होकर नित नए प्रयोग करते रहे। उन्होंने मालवी में अपने गाँव-खेड़े से लेकर विश्व फलक पर आ रहे परिवर्तनों को बेहद आत्मीयता और सरल-तरल ढंग से उकेरा है। ‘देस म्हारो बदल्यो’ गीत में वे घर-आँगन, हाट-बाजार, गाँव-शहर सब ओर आ रहे परिवर्तनों के स्वर में स्वर मिलाने का आह्वान करते हैं। इस गीत के हर छंद की समापन पंक्तियों में उन्होंने एक-एक कर कुल छह लोकधुनों का अनूठा प्रयोग किया है।

 बदल्यो रे बदल्यो यो देस म्हारो बदल्यो
 आनी मानी लाल गुमानी अब विपता नहीं झेलेगा
 कंगाली की कम्मर तोड़ी मस्साणां में झेलेगा
 जामण को सिणगार करीर्या अपणा खून पसीना ती
 ईकी ई ललकाराँ अईरी मथरा और मदीना ती।

तू चंदा मैं चांदनी ... बालकवि बैरागी जी की मशहूर संगीतकार जयदेव द्वारा संगीतबद्ध रचना, जिसे लता मंगेशकर ने स्वर दिया था।

तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पात रे

ना सरोवर, ना बावड़ी, ना कोई ठंडी छांव
ना कोयल, ना पपीहरा, ऐसा मेरा गांव रे
कहाँ बुझे तन की तपन, ओ सैयां सिरमोल रे
चंद्र-किरन तो छोड़ कर, जाए कहाँ चकोर
जाग उठी है सांवरे, मेरी कुआंरी प्यास रे
(पिया) अंगारे भी लगने लगे आज मुझे मधुमास रे

तुझे आंचल मैं रखूँगी ओ सांवरे
काली अलकों से बाँधूँगी ये पांव रे
चल बैयाँ वो डालूं की छूटे नहीं
मेरा सपना साजन अब टूटे नहीं
मेंहदी रची हथेलियाँ, मेरे काजर-वाले नैन रे
(पिया) पल पल तुझे पुकारते, हो हो कर बेचैन रे

ओ मेरे सावन साजन, ओ मेरे सिंदूर
साजन संग सजनी बनी, मौसम संग मयूर
चार पहर की चांदनी, मेरे संग बिठा
अपने हाथों से पिया मुझे लाल चुनर उढ़ा
केसरिया धरती लगे, अम्बर लालम-लाल रे
अंग लगा कर साहिब रे, कर दे मुझे निहाल रे।

यूट्यूब लिंक पर जाएँ 
https://youtu.be/HHVEd_WhTSk










शनिवार, 17 मार्च 2018

मालवी को मिल रही है दुनिया में नई पहचान

मालवी के मली री हे दुनिया माय पेचान

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 


ग्रीक ने मालवी सभ्यता को घणो पुरानो रिश्तो रियो हे। मालवा का केई पुरातात्विक महिमा वाली जगा पे बाईस सो साल पेलां का ग्रीक सिक्का ने निष्क सरीका जेवर मिल्या हे। ग्रीक ने मालवी लोक गीत - संगीत का मेलजोल से मालवा की  कलाकार डॉ सरिता मेकहार्ग ने मेलबॉर्न में रेवा वाला ग्रीक - ऑस्ट्रेलियाई संगीतकार बायरन जाग के सांते तैयार करी हे परम्परा माय नवाचार की नई जमीन। आओ मनावां गुड़ी पड़वा के दन मालवी दिवस: बोलांगा तो बंचेगी मालवी। घणी घणी बधइ ने स्वस्तिकामनाएँ डॉ सरिता बोरलिया Sarita Mcharg Sarita Borliya संग सहभागीजन।

डॉ सरिता ने मालवा के विविधमुखी कला और संगीत रूपों के प्रशिक्षण, नवाचार और विस्तार के लिए भी पर्याप्त प्रयास किए हैं। इनमें प्रमुख हैं: संजा, गणगौर, बना-बनी गीत, कबीर एवं नाथ पंथी गायन आदि।   

मालवी लोक संस्कृति: परम्परा और नवाचार


मालवी दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, गुड़ी पड़वा की पूर्व संध्या पर आयोजित इस परिसंवाद में मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के समकालीन परिदृश्य के साथ भावी सम्भावनाओं को लेकर मंथन हुआ। कोई लोक भाषा काल के प्रवाह में तभी अपना अस्तित्व बचाए रख सकती है जब उसे व्यवहार में लाया जाए और नवाचार भी जारी रहें।

मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया में नाद अकादेमी ऑफ सॉल के स्थापना डॉ सरिता ने की है। उनकी स्वतंत्र और बायरन जाग के साथ तैयार की गई संगीत और नृत्य संरचनाओं को यूट्यूब और साउंड क्लाउड पर देखा - सुना जा सकता है। यहाँ कुछ लिंक प्रस्तुत हैं।

https://youtu.be/KIoa05sAjLM

https://youtu.be/gqbxWdlXCYY

https://youtu.be/wZZYwJlWkaQ0


Listen to Byron Jag Sarita Jam S3 Pm by SouLSpiriT #np on #SoundCloud


https://soundcloud.com/soulspirit-2/byron-jag-sarita-jam-s3-pm

Listen to Byron Jag Sarita Jam S2 Pm by SouLSpiriT #np on #SoundCloud

https://soundcloud.com/soulspirit-2/byron-jag-sarita-jam-s2-pm

Listen to Byron Jag Sarita Jam S1 M2  Am by SouLSpiriT #np on #SoundCloud


https://soundcloud.com/soulspirit-2/byron-jag-sarita-jam-s1-m2-am

Listen to Byron Jag Sarita Jam S3 Pm by SouLSpiriT #np on #SoundCloud

https://soundcloud.com/soulspirit-2/byron-jag-sarita-jam-s3-pm

Listen to Byron Jag Sarita Jam S4 Pm by SouLSpiriT #np on #SoundCloud

https://soundcloud.com/soulspirit-2/byron-jag-sarita-jam-s4-pm


- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma









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