शनिवार, 25 मई 2013

अब विद्यार्थी पढ़ेंगे 'यो है म्हारो देश मालवो'



अब विद्यार्थी पढ़ेंगे 'यो है म्हारो देश मालवो'

मालवी और लोकनाट्य माच को वैश्विक शिक्षा पटल पर मिला मान, यूजीसी ने ई-पीजी पाठशाला के सिलेबस में किया शामिल 


आशीष दुबे , उज्जैन 

यो है म्हारो देश मालवो मईमां यां की मोटी, जंगल-जंगल में मंगल पग-पग में पाणी-रोटी। अब तक मेला मंचों और मालवी क्षेत्रों में गूंजने वाले इस गीत को अब स्नातकोत्तर (पीजी) के विद्यार्थी पढऩे, लिखने और याद करने के साथ परीक्षा में भी लिखेंगे। तीन राज्यों के 22 जिलों में दो करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली मालवी बोली और 220 साल पुराने मालवांचल के प्रसिद्ध लोकनाट्य माच को वैश्विक शिक्षा पटल पर मान मिला है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मालवा और माच को सम्मान देते हुए इसे ई-पीजी पाठशाला के सिलेबस का हिस्सा बनाया है। 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के अंतर्गत ई-पीजी पाठशाला के लिए दो माह पहले ही निर्णय हुआ है, जिसमें यूजीसी इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे विद्यार्थियों को विषय के आधार पर पढऩे योग्य सामग्री मुहैया कराएगा। 
हिंदी साहित्य के अंतर्गत भारत के लोक साहित्य की परंपरा विषय में मालवी, मालवी भाषा, लोकनाट्य माच को भी शामिल किया है। 
विक्रम विवि उज्जैन के कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्र शर्मा को ई-कंटेंट तैयार करने का जिम्मा यूजीसी की ओर से मिला है। यूजीसी की ई-पीजी पाठशाला के लिए हिंदी कोर्स के को-ऑर्डिनेटर एवं जवाहरलाल नेहरू विवि नईदिल्ली के प्रो. राम बक्ष ने बताया केंद्र की विशेष योजना के अंतर्गत विषय सामग्री तैयार करने का काम किया जा रहा है। आगामी सत्र (2013-14) से इसे शुरू करने का प्रयास है। इससे दुनियाभर के विद्यार्थी, शिक्षक और शोधार्थी घर बैठे पढ़ाई का लाभ ले सकेंगे। 
मालवा और माच पर केंद्रित रहेंगे तीन पाठ 
लोकनाट्य माच एवं मालवी के लिए ई-कंटेंट तैयार कर रहे विक्रम विवि के डॉ. शैलेंद्र शर्मा ने बताया सिलेबस में इन विषयों के करीब तीन पाठ शामिल होंगे। इसमें मालवा, मालवी बोली, लोकनाट्य माच की पृष्ठभूमि, विकास यात्रा, प्रमुख विशेषताएं, शिल्प विधान, वर्ण के रूप में माच गुरु सिद्धेश्वर सेन का माच राजयोगी भर्तृहरि और मार्मिक प्रसंगों को शामिल किया जाएगा। माच पर आधारित वीडियो भी इंटरनेट पर डाले जाएंगे। डॉ. शर्मा के अनुसार विषय सामग्री तैयार कर जल्द ही इसे अंतिम रूप देकर यूजीसी को भेजा जाएगा। मालवी और माच के अलावा बृज, अवधी, मैथिली, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, बुंदेली, हरियाणवी, पहाड़ी और खड़ी बोली को भी विषय सामग्री में शामिल किया जाएगा। 
शहर से ही हुई थी माच की शुरुआत 
इतिहासकार डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित के अनुसार लोकनाट्य माच करीब 220 साल पुराना है। उज्जैन के भागसीपुरा के गुरु गोपालजी ने 1793 में माच लेखन के साथ इसकी शुरुआत की थी। उनके बाद गुरु बालमुकुंदजी, गुरु फकीरचंदजी, गुरु भेरूलालजी और नए दौर में सिद्धेश्वर सेन व ओमप्रकाश शर्मा ने इसे आगे बढ़ाया। माच में संवाद, गीत, नृत्य, संगीत और विशिष्ट रंगतों का प्रयोग कर संपूर्ण नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते हैं। माच मालवी की विभिन्न लोकपरंपराओं का समावेश करता है। उज्जैन के अलावा इंदौर भी माच का बड़ा केंद्र है। 






Published on 24 May-2013 DAINIK BHASKAR

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