मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

लोक पर्व गणगौर : जब लोक में उतरते हैं विश्वाधार : प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Gangaur : The Folk Festival of India : Prof. Shailendra Kumar Sharma

लोक पर्व गणगौर : जब लोक में उतरते हैं विश्वाधार

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 


हर बरस मालवा-निमाड़ से लेकर गुजरात, राजस्थान और हरियाणा के विभिन्न अंचलों तक लोक पर्व गणगौर की धूम मचती है। यह विश्वाधार के लोक से संवाद का पर्व है। लोकमन इस मौके पर उमंग और उल्लास में डूब जाता है। आखिर क्यों न हो मालवा की रनुबाई-पार्वती से मिलने घणिया राजा - भोला भण्डारी अपने ससुराल जो आते हैं। फिर दामाद की आवभगत में कमी कैसे रहे।

कुछ तस्वीरें निज संग्रह के काष्ठ शिल्पों की। 

चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है यह लोक पर्व। इस दिन कुंवारी लड़कियां एवं विवाहित स्त्रियाँ शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं।


गणगौर गीत 1

गोर गोर गोमती, इसर पूजे पार्वती

म्हे पूजा आला गिला, गोर का सोना का टीका

म्हारे है कंकू का टीका

टीका दे टमका दे ,राजा रानी बरत करे

करता करता आस आयो, मास आयो 

छटो छह मास आयो, खेरो खंडो लाडू लायो

लाडू ले बीरा ने दियो, बीरा ले भावज ने दियो 

भावज ले गटकायगी, चुन्दडी ओढायगी

चुन्दडी म्हारी हरी भरी, शेर सोन्या जड़ी 

शेर मोतिया जड़ी, ओल झोल गेहूं सात

गोर बसे फुला के पास, म्हे बसा बाणया क पास 

कीड़ी कीड़ी लो, कीड़ी थारी जात है 

जात है गुजरात है, गुजरात का बाणया खाटा खूटी ताणया

गिण मिण सोला, सात कचोला इसर गोरा 

गेहूं ग्यारा, म्हारो भाई ऐमल्यो खेमल्यो, लाडू ल्यो , पेडा ल्यो 

जोड़ जवार ल्यो, हरी हरी दुब ल्यो, गोर माता पूज ल्यो।


गणगौर पर्व का सम्बंध है सुखमय जीवन से : 

नवरात्र के तीसरे दिन यानि कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया - तीज को गणगौर माता (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता और भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर जी तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से विवाह हो गया। 

तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती हैं। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ होती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी के छल्ले आदि पूजन सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है।

आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर) के यहां अपनी ससुराल आते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती हैं और वहाँ से मिट्टी के बर्तन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है। उस मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की छोटी छोटी मूर्तियाँ बनाती हैं। जहाँ पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँ विसर्जन किया जाता है, वह स्थान ससुराल माना जाता है।




यह तस्वीर हमारे निजी संग्रह के काष्ठ शिल्प की।





गणगौर गीत: शुक्र को तारो रे ईश्वर ऊगी रयो। प्रसिद्ध लोक गायिका श्रीमती हेमलता उपाध्याय के स्वरों में। धन्यवाद Shishir Upadhyay Jaishree Upadhyay

लिंक पर जाएँ :- 

 

https://youtu.be/oFKuw1q8qek










गणगौर गीत 2

पीयर को पेलो जड़ाव की टीकी,

मेण की पाटी पड़ाड़ वो चंदा...

कसी भरी लाऊं यमुना को पाणी...

हारी रणुबाई का अंगणा म ताड़ को झाड़।

ताड़ को झाड़ ओम म्हारी

देवि को र्यवास।

रनूबाई रनू बाई, खोलो किवाड़ी...।

पूजन थाल लई उभी दरवाजा

पूजण वाली काई काई मांग...



गणगौर नृत्य: श्रीमती साधना उपाध्याय के निर्देशन में निमाड़ गणगौर एवं लोक कला मण्डल, खण्डवा के कलाकारों की सम्मोहक प्रस्तुति। आत्मीय धन्यवाद Hemant Upadhyay Adv Animesh Upadhyay 

लिंक पर जाएँ :- 


https://youtu.be/bMPv7HrXoKE












भास्कर के विशेष कवरेज के लिए आत्मीय धन्यवाद Ashish Dubey


- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

Shailendrakumar Sharma


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