शुक्रवार, 18 जून 2021

मालवी के मर्ममधुर गीतकार मोहन सोनी - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा | Mohan Soni : The Melodious Lyricist of Malvi - Prof. Shailendrakumar Sharma

मालवी के मर्ममधुर गीतकार मोहन सोनी : रई रई के म्हारे हिचक्याँ अइ री हे - प्रो शैकेन्द्रकुमार शर्मा  

Mohan Soni : The Melodious Lyricist of Malvi - Shailendrakumar Sharma 


आत्मीय स्मरण दादा मोहन सोनी 


मालवी गीतमाला का मनका - गीत 'रई रई के म्हारे हिचक्याँ अइ री हे' मूक हो चला है। दादा मोहन सोनी  (23 मई 1938-  18 जून 2019) नहीं रहे, विश्वास नहीं होता। आधुनिक मालवी काव्य को नई रंगत उन्होंने दी थी। पूरे देश को मालवी कविताओं के रस से सराबोर करने वाले स्व. मोहन सोनी ने देश के जाने - माने कवि स्व. बालकवि बैरागी, निर्भय हाथरसी, काका हाथरसी, नीरज, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, निर्भय हाथरसी, हरिओम पँवार सहित कई दिग्गज हिंदी कवियों के साथ मंच साझा करते हुए मालवी भाषा को नई पहचान दी थी। 




उनका चर्चित गीत है- 


रई रई के म्हारे हिचक्याँ अइ री हे

लजवन्ती तू ने याद कर्यो होगा।


थारे बिन मोसम निरबंसी लागे

तू हो तो सूरज उगनो त्यागे

म्हारी आँख्यां भी राती वईरी हे

तू ने उनमें परभात भरयो होगा।


सुन लोकगीत का पनघट की राणी

थारे बिन सूके पनघट को पाणी

फिर हवा,नीर यो काँ से लईरी हे

आख्याँ से आखी रात झरयो होगा।


बदली सी थारी याद जदे भी छई

बगिया की सगळी कली कली मुसकई

मेंहदी की सोरभ मन के भईरी हे

म्हारा फोटू पे हाथ धर्यो होगा।


रई रई के म्हारे हचक्याँ अईरी हे

लजवंती तू ने याद कर्यो होगा।






माँ पर मालवी में लिखी गई उनकी यह रचना मालवी की मिठास और माँ की महिमा का सुखद एहसास कराती है: 


माता ने धरती माता सरग से बड़ी है

मोहन सोनी 

(मालवी कविता)


माता ने धरती माता सरग से बड़ी है

म्हारा पे तो दोई माँ की ममता झड़ी है।


एक ने जनम दियो , दूसरी ने झेल्यो

दोई माँ का खोला में हूँ एक साथ खेल्यो।

एक है बगीचों , दूजी फूल की छड़ी हे

म्हारा पे तो दोई माँ की ममता झड़ी है।


जायी माँ धवावे तो धरती धपावे

एक गावे लोरी , दूजी पालने झुलावे

भावना का सांते जाणे गीत की कड़ी है

म्हारा पे तो दोई माँ की ममता झड़ी है।


सिंघनी को पूत हूँ मै ,गाजूँ ने गजउँगा

धायो हे थान माँ को दूध नी लजउँगा

धरती को धीरज देखो पावँ में पड़ी है

म्हारा पे तो दोई माँ की ममता झड़ी है।


करजदार दोई को पन हिरदा से पूजी

जनम तंई समाले पेली, मरवा पे दूजी

जनम से मरण तक दोई हाजर खड़ी है

म्हारा पे तो दोई माँ की ममता झड़ी है।


(यह कविता स्व. मोहन सोनी के सुपुत्र श्री प्रमोद सोनी ने वरिष्ठ पत्रकार श्री चंद्रकांत जोशी, मुंबई को भेजी थी। उनके सौजन्य से यह कविता साभार प्रस्तुत)


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